Description
कौन हैं बाबा खाटू श्याम?
खाटू श्याम असल में भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हैं। इन्हीं की खाटू श्याम के रूप में पूजा की जाती है। बर्बरीक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे और इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे। इसी कारण इन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है।
क्या है मान्यता?
इस मंदिर की एक बहुत ही खास और अनोखी बात प्रचलित है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है इसे बाबा श्याम का हर बार एक नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को उनके आकार में भी बदलाव नजर आता है।
मान्यता है कि स्वप्न दर्शन के बाद बाबा श्याम खाटू धाम में एक कुंड जिसे श्याम कुंड कहते हैं, उसीसे प्रकट हुए थे और श्रीकृष्ण शालिग्राम के रूप में मंदिर में दर्शन देते हैं। यह भी माना जाता है कि यहां आने वाले हर हारे हुए और निराश भक्त को बाबा श्याम सहारा देते हैं।
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की। जब मां ने इसकी अनुमति दे दी तो उन्होंने माता से पूछा, ‘मैं युद्ध में किसका साथ दूं?’ इस प्रश्न पर माता ने विचार किया कि कौरवों के साथ तो विशाल सेना, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महारथी हैं, इनके सामने पांडव अवश्य ही हार जाएंगे। इसलिए उन्होंने बर्बरीक से कहा कि ‘जो हार रहा हो, तुम उसी का सहारा बनो।’
बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेंगे और वह युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े। भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का अंत जानते थे इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक कौरवों का साथ देने लगा तो पांडवों का हारना निश्चित है। तब श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक सोच में पड़ गया कि कोई ब्राह्मण मेरा शीश क्यों मांगेगा? यह सोच उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रूप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए। इसपर उन्होंने अपनी तलवार निकालकर श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सिर अर्पण कर दिया। श्रीकृष्ण ने तेजी से उनके शीश को अपने हाथ में उठाया एवं अमृत से सींचकर अमर कर दिया। उन्होंने श्रीकृष्ण से सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की इसलिए भगवान ने उनके शीश को युद्ध भूमि के समीप ही सबसे ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया, जहां से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सकते थे।
हालांकि शीश दान से पहले बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जताई तो श्रीकृष्ण ने उनके शीश को एक ऊंचे स्थान पर स्थापित करके उन्हें युद्ध देखने की दृष्टि दी। साथ ही वरदान दिया कि कलियुग में तुम्हें मेरे नाम से पूजा जाएगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा।
इसी कथा के अनुसार युद्ध समाप्ति के बाद जब पांडव विजयश्री का श्रेय देने के लिए वाद विवाद कर रहे थे तब श्रीकृष्ण कहा कि इसका निर्णय तो बर्बरीक का शीश ही कर सकता है। तब बर्बरीक ने कहा कि युद्ध में दोनों ओर श्रीकृष्ण का ही सुदर्शन चल रहा था और द्रौपदी महाकाली बन रक्तपान कर रही थी।
खाटू श्याम जी की पूजा के लिए ज़रूरी सामग्री :-
गुलाब का फूल, माला, या इत्र
गाय का कच्चा दूध
मावा के पेड़े
मयूर पंख
बाबा श्याम तस्वीर वाला ध्वज
खाटू श्याम जी की पूजा के बारे में कुछ और बातें:
हिंदू धर्म में गुलाब को प्रेम का प्रतीक माना जाता है. इसलिए, भक्त बाबा श्याम जी को गुलाब चढ़ाते हैं.
माना जाता है कि बाबा श्याम ने सबसे पहले गाय के दूध का प्रसाद ग्रहण किया था. इसलिए, उन्हें सबसे पहले गाय का कच्चा दूध चढ़ाया जाता है.
बाबा श्याम को मावा के पेड़े भी बहुत पसंद हैं.
बाबा श्याम को श्रृंगार आरती और संध्या आरती के समय सजाया जाता है.
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