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गुप्त नवरात्रि में माँ काली की पूजा

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Description

दस महाविद्याओं में माँ काली प्रथम रूप है। माँ काली जी का स्वरुप अत्यंत विकराल, अभंयकारी और मंगलकारी है. माँ काली का ये स्वरुप असुरों का सर्वनाश करने वाला है। यदि कोई व्यक्ति गुप्त नवरात्री के दौरान माँ काली
की पूजा करता है तो उसके ऊपर सामने आसुरी शक्तियों का कोई असर नहीं होता हैं। माँ काली की पूजा करने वाले व्यक्ति को रूप, यश, विद्या की प्राप्ति होती है। समस्त सांसारिक बाधाएं खत्म हो जाती है.
माँ काली ने चंड-मुंड नाम के राक्षश संहार किया था इसलिए इन्हे चामुण्डा के नाम से भी जाना जाता है। माँ काली अपने गले मुंडमाला धारण करती हैं इनके एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटा हुआ सिर होता है।

मां दुर्गा ने रक्तबीज नाम के असुर का वध करने के लिए माँ काली का अवतार धारण किया था. दस महाविद्याओं में माँ काली प्रथम देवी है. गुप्त नवरात्रि में प्रथम दिन माँ काली की आराधना की जाती है. जो लोग तंत्र शक्तियां प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें गुप्त नवरात्र के पहले दिन विशेष रूप से मां काली की पूजा किया जाता है , इसके अलावा मां काली की आराधना करने से सभी प्रकार की तंत्र बाधाओं से छुटकारा मिलता है. जो लोग अपने शत्रुओं से बहुत परेशान रहते है उन्हें गुप्त नवरात्रि में मां काली की आराधना करनी चाहिए, ऐसा करने से शत्रु से मुक्ति मिलती है।

माँ काली की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है। गुप्त नवरात्रि में दो तरीकों से मां काली की पूजा की जाती है, जो लोग तांत्रिक विद्या हासिल करना चाहते हैं वह लोग इस दिन मां काली की तंत्र विद्या द्वारा उपासना करते हैं। कुछ लोग गुप्त नवरात्र के प्रथम दिन सामान्य तरीके से मां काली आराधना करते हैं. जिससे उनके जीवन के सभी संकट दूर हो जातें हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दारुक नाम के राक्षस ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त कर, देवताओं और ब्राह्मणों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था और स्वर्गलोक पर अपना आधिपत्य जमा कर लिया था ।
जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को बताया कि इस दुष्ट का संहार एक स्त्री ही कर सकती है। जिसके बाद सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उन्होंने भगवान
शिव को सभी बात बताई।

जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती की और देखा। माता पार्वती इस पर मुस्कुराई और अपना एक अंश भगवान शिव में प्रवाहित कर दिया जिसके बाद भगवान शिव के कंठ से विष से उस अंश ने अपना आकार धारण किया।जिसके बाद भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। उनके इस नेत्र से विकराल रूप वाली मां काली प्रकट हुई। मां काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी। मां काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे।

जिसके बाद मां काली का दारूक और उसकी सेना के साथ भंयकर युद्ध हुआ मां काली ने सभी का वध कर दिया। लेकिन मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ और मां काली के इस क्रोध से संसार भी जलने लगा। जिसके बाद भगवान शिव ने एक बालक रूप धारण किया और शमशान में लेट कर रोने लगे। जिसके बाद मां काली उन्हें देखकर मोहित हो गई। इसके बाद मां काली ने बालक रूपी भगवान शिव को अपने गले से लगाकर अपना दूध पिलाया। जिसके बाद उनका क्रोध भी शांत हो गया।

पूजन समाग्री :-

* माँ काली तस्वीर/फोटो
* कुमकुम
* सिंदूर
* कपूर
* लौंग
* इलाची
* गेहू
* अक्षत
* सुपारी
* इत्रा
* हल्दी (पी)
* अष्टगाँध
* शहद
* कलावा
* हल्दी गंथ
* श्रृंगार
* चुनरी
* पंचमेवा
* दीया
* घिबट्टी
* अग्रबट्टी
* धूप
* गंगाजल
* कलश

नोट :- यदि ऊपर दिए गए जानकारी में किसी प्रकार की त्रुटि हो तो कृप्या अवगत कराए ।

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