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काली चौदस का महत्व:-
काली चौदस का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। आइए जानें इसके पीछे की कुछ महत्वपूर्ण मान्यताओं के बारे में:
अंधकार पर प्रकाश की विजय: काली चौदस को बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्त माता काली की पूजा कर उनसे बुरी शक्तियों और अंधकार से रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं। सनातन धर्म में माता काली को शक्ति और विनाश की देवी माना जाता है, जो बुराई का अंत करती हैं।
पितृ स्मरण: काली चौदस के दिन लोग अपने पूर्वजों, यानी पितरों को याद करते हैं और उनका श्राद्ध करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध और तर्पण से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
धनतेरस की तैयारी: काली चौदस, धनतेरस से ठीक एक दिन पहले पड़ता है। धनतेरस के दिन धन प्राप्ति और समृद्धि के लिए सोना, चांदी और धातु के अन्य सामान खरीदने की परंपरा है। इसलिए, काली चौदस के दिन लोग धनतेरस की तैयारियों में व्यस्त रहते हैं और खरीदारी के लिए बाजारों की रौनक देखने लायक होती है।
विक्रम संवत का आरंभ: कई क्षेत्रों में, विशेष रूप से पश्चिमी भारत में, काली चौदस को विक्रम संवत के नए साल की आरंभ के रूप में भी मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं और मिठाइयां बांटकर खुशियां मनाते हैं।
काली चौदस को नरक चतुर्दशी, नरक निवारण चतुर्दशी, और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है. यह कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है.
काली चौदस को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है.
काली चौदस पर मां काली की पूजा करने से मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है, एवं शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है.
काली चौदस पर मां काली की पूजा करने से राहु-शनि दोषों से मुक्ति मिलती है और शत्रु पर विजय प्राप्ति का वरदान मिलता है.
काली चौदस पर मां काली की पूजा करने से काले जादू के बुरे प्रभाव का नाश होता है.
काली चौदस पर मां काली की पूजा करने से लंबे समय से चली आ रही बीमारियां दूर हो जाती हैं.
बंगाल में काली चौदस को मां काली के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है.
काली चौदस पर काले या नीले जैसे गहरे रंग पहनना नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का प्रतीक है.
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